हमारे बारे में
आज चारों और सामाजिक अन्याय, अर्थनैतिक शोषण, राजनैतिक अपराधीकरण,
शैक्षणिक ह्रास, नैतिक अद्य:पतन, धार्मिक अंधविश्वास तथा भ्रष्टाचार और घोटालों का
बोलबाला है। विश्वमानवता सही जीवन दर्शन के आभाव में दिग्भ्रांत होकर घोर निराशा
के अन्धकार में भटक रही है।
ऐसी विषम परिस्थिति में महान दार्शनिक श्री प्रभात रंजन सरकार
द्वारा सन 1959 में प्रतिपादित एक सामजिक,अर्थनैतिक एवं राजनैतिक
सिद्धांत "प्रउत" अर्थात प्रगतिशील उपयोगी तत्व पीड़ित मानवता के लिए
एकमात्र आशा कि किरण है । जहाँ पूंजीवाद और साम्यवाद दोनों प्रयोग कि कसौटी पर
पूर्णरूप से असफल हो चुकें हैं , वहां प्रउत विश्व कि समस्त समस्याओं का समाधान
लेकर मानवता कि सेवा में प्रस्तुत है।
प्रउत का मानना है की चूँकि मनुष्य अपने साथ न कुछ लेकर आता है और
न कुछ लेकर जाता है, इसलिए वह किसी भौतिक संपत्ति जैसे ज़मीन,जल,खनिज पदार्थ आदि
का मालिक नहीं है । उसे सिर्फ उनके उपयोग का अधिकार है । इसके अलावा भौतिक संपत्ति
सीमित मात्रा में मौजूद है । इसलिए किसी भी मनुष्य को उसे जितना चाहे जमा करने की
खुली छूट नहीं दी जा सकती । सीमित धन एवं संसाधनों का विवेकपूर्ण ढंग से वितरण की
इस प्रकार व्यवस्था करनी होगी की प्रत्येक व्यक्ति अपनी मूल आवश्यकताओं जैसे
भोजन,वस्त्र,आवास,चिकित्सा और शिक्षा की पूर्ति के पर्याप्त धन कमा सके ताकि वह
अपने शरीर को पुष्ट और मन को विकसित कर सके ।
इसके लिए आवश्यक है कि सभी नैतिक लोग एकजुट होकर सामाजिक,आर्थिक,राजनैतिक,सांस्कृतिक
एवं धार्मिक क्षेत्रों में व्याप्त शोषण और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक विप्लव
(क्रांति) की शुरुआत करें । यह पत्रिका एक ऐसी ही क्रांति का बिगुल है । इसी
उद्देश्य की पूर्ति के लिए श्री प्रभात रंजन सरकार ने एक राजनैतिक दल 'प्राउटिष्ट
ब्लाक, इंडिया' (पीबीआई) की स्थापना की जो भारतीय चुनाव आयोग द्वारा पंजीकृत है और
दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा, कर्णाटक, विदर्भ आदि राज्यों में
सक्रिय रूप से काम कर रहा है। 'प्रउत क्रांति' प्राउटिष्ट ब्लाक, इंडिया का
मुखपत्र है।
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