गरीबी, बेरोज़गारी, मंदी, महंगाई, भ्रष्टाचार,
जनसँख्या विस्फोट, अपराध, आतंकवाद, अपसंस्कृति आदि आज देश और दुनिया के सामने बड़े
संकट हैं। इनमें से कई उस समय भी मौजूद थे जब देश ने अंग्रेज़ों से आज़ादी हासिल की
थी। तब लोगों ने सोचा था कि उन्हें जल्द ही इन मुसीबतों से छुटकारा मिल
जाएगा। लेकिन आज 70 साल बाद भी हम इन
समस्याओं से जंग कर रहे हैं। इन समस्याओं के खिलाफ हिन्दुस्तान ने कई आंदोलन और संघर्ष देखे हैं लेकिन नतीजे उत्साहवर्धक नहीं रहे। लोगों में बढ़ती निराशा अब उग्र रूप में धारण कर रही है।
इस पृष्ठभूमि में पीबीआई की मांग है कि देश में जल्द से जल्द 'अमीरी रेखा' खींची जाए
।
यानि समाज की अनुमति के बिना किसी को भी एक निश्चित सीमा से अधिक धन-संपत्ति जमा करने की अनुंमति नहीं होनी चाहिए
।
ऐसा करने से निम्नलिखित लाभ होंगे :
1. गरीबी का ख़ात्मा: जीने, रहने, सोचने, बोलने के अधिकार की तरह 'संपत्ति रखने का अधिकार' जन्मजात अधिकार नहीं है। कोई भी इंसान न कुछ साथ लाता है, न साथ लेकर जाता है, इसलिए वो इस दुनिया की किसी भी वस्तु का मालिक नहीं है ; उसे सिर्फ और सिर्फ 'उपयोग का अधिकार है' ।
संपत्ति रखने का अधिकार आया 18 वीं सदी के अंत में जब इंग्लैंड में शुरू हुई औद्योगिक क्रांति ने पूँजीवाद को जन्म दिया। पूंजीपतियों ने अधिक से अधिक लाभ कमाने के लिए जल, जंगल, जमीन, खनिज पदार्थ, पशु-पक्षी और मनुष्यों का उपयोग और शोषण किया। साथ ही अपने प्रभाव से 'ज्यादा से ज्यादा धन-संपत्ति जमा करने और उसका मालिक होने के अधिकार' को समाज में मान्यता दिलवा दी। वरना कुछ पश्चिमी और यूरोपीय देशों को छोड़ कर अफ्रीका, एशिया, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया आदि के देशों की मूल संस्कृतियाँ मनुष्य को नहीं बल्कि परमात्मा को सभी संपत्ति का मालिक मानतीं हैं।
इसके अलावा भौतिक संपत्ति सीमित है। पृथ्वी पर प्रचुर संसाधन हैं, परन्तु इनकी एक सीमा है। इन सीमित संसाधनो का उपयोग 7 अरब से अधिक मनुष्यों और दूसरे जीव-जंतुओं के पालन-पोषण के लिये किया जाना चाहिए। परन्तु अगर यह सीमित संपत्ति मुट्ठीभर लोगों के हाथों में सिमट कर रह जाए तो बाकी आबादी को नारकीय जीवन जीना पड़ेगा। आज स्थिति यह कि :
- मात्र 1 % लोग दुनिया की 50 % संपत्ति के मालिक हैं।
- मात्र 8 अमीर लोगों की कुल संपत्ति दुनिया की आधी आबादी यानी साढ़े तीन अरब लोगों की कुल संपत्ति के बराबर है।
- अमेरिका जैसे देश में भी मात्र 400 लोगों की संपत्ति अमेरिका की 61% आबादी की संपत्ति के बराबर है।
दूसरी ओर
- भारतवर्ष की 10% आबादी के पास देश की 80% संपत्ति है। दुनिया के एक तिहाई गरीब भारतवर्ष में रह रहे हैं ।
- मात्र 57 भारतीय अरबपतियों के पास देश की 70 प्रतिशत
आबादी के बराबर संपत्ति है।
- 75 प्रतिशत ग्रामीण जनता मात्र 33 रुपये प्रतिदिन पर
गुज़ारा कर रही है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारतवर्ष में
प्रतिवर्ष 98 हज़ार लोग साफ पानी न मिल पाने के कारण मौत का शिकार हो जाते हैं।
- लगभग 3000 भारतीय बच्चे रोज़ भूख और कुपोषण के कारण
असमय मर जाते हैं।
उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट है कि आज की
समाजार्थिक व्यवस्था, जो अनियंत्रित धन संग्रह की अनुमति ही नहीं देती बल्कि उसको
बढ़ावा भी देती है, पूरी तरह अनुचित है। इन हालत में पी.बी.आई. का साफ़ ऐलान है कि सीमित सम्पदा में असीमित जमा करने की छूट नहीं दी जा सकती
। सीमित संपत्ति का निम्नलिखित न्यायोचित ढंग से वितरण
किया जाना चाहिए :
1.
हर व्यक्ति चाहे वह नौकरी करता हो या बिजनेस या खेती उसकी न्यूनतम और अधिकतम संपत्ति की सीमा तय की जानी चाहिए।
2.
रोटी, कपड़ा, मकान, चिकित्सा, शिक्षा आदि जैसी मूल आवश्यकताओं को खरीदने के लिए जितने पैसे की जरूरत है, कम से कम उतने वेतन वाले रोजगार की सभी को गारंटी देनी होगी।
- तथा अधिक प्रतिभाशाली, मेहनती और ईमानदार व्यक्ति को एक सीमा तक अधिकतम वेतन या बोनस देने की व्यवस्था करने होगी।
- न्यूनतम और अधिकतम संपत्ति के बीच दस गुना से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए। इस अंतर को कम करने का प्रयास किया जाना चाहिए परन्तु पूरी तरह समाप्त नहीं किया जाना चाहिए। अंतर पूरी तरह से समाप्त करने से काम करने के लिए जरूरी प्रोत्साहन ख़त्म हो जायेगा और उत्पादकता में कमी आएगी जैसा कि रूस जैसे साम्यवादी (कम्युनिष्ट) देशों में हुआ।
2.
भ्रष्टाचार पर लगाम : इन्सान को धन की आवश्यकता दो कारणों से होती है: पहला, अपनी वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए और दूसरे,अपनी भविष्य की आवश्यकतों की पूर्ति के लिए। यदि इन के लिए पर्याप्त धन का इंतजाम कर लेने के बाद भी कोई धन जमा करना जारी रखता है, तो इसका मतलब है कि वह एक मानसिक बीमारी से पीड़ित है जिसमे उसे धन जमा करने मात्र से ही सुख प्राप्त हो रहा है, चाहे वह और उसकी सात पुश्तें भी उसका पूरी तरह से उपयोग न कर पाएं। उसके लिए पैसा जमा करना अंकों का खेल बन जाता है - करोड़, दस करोड़, फिर सौ करोड़, हज़ार करोड़ - बीमारी बढ़ती जाती है।
अगर आपसे कहा जाये की कोई व्यक्ति टोपियों का इतना शौकीन है कि उसके घर में हर जगह टोपियाँ हैं - बैठक में टोपियाँ, मेज के नीचे टोपियाँ, पलंग के ऊपर टोपियाँ, नीचे टोपियाँ, बाथरूम में टोपियाँ, टॉयलेट में,किचेन में, छत में टोपियाँ, यहाँ तक कि उसने अपने घर आँगन में और घर के पीछे टोपियाँ रखने के लिए गोदाम बना दिए हैं और टोपियाँ रखने के लिए एक और मकान खरीदने की सोच रहा है, तो आप बिना देर लगाए कहेंगे कि वो शौकीन नहीं पागल है। लेकिन आज पैसा जमा करने में पागलों की तरह लगे लोगों की तस्वीरें पत्रिकाओं के कवर पर छपतीं हैं और उन्हें समाज में बहुत सम्मान मिलता है ; उन्हें हमारे रोल मॉडल या आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
अगर सीमित अनाज, फल, सब्जियों, तेल आदि की जमाखोरी करना नाजायज और गैरकानूनी है, तो इन चीजों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक धन की जमाखोरी करना कैसे जायज और कानूनी हो सकता है।
धन से 'नीड' पूरी हो सकती है 'ग्रीड' नहीं। आज भ्रष्टाचार के लिए वे लोग जिम्मेदार हैं जिन्हे लालच की बीमारी है। जिन्हे आवश्यकता के लिए नहीं बल्कि विलासिता और सामाजिक रूतबे के लिए पैसा चाहिए, ऐसे ही लोग -- वे चाहे सरकारी कर्मचारी हों या पूंजीपति व्यापारी -- घोटाले करते हैं, मोटी-मोटी रिश्वतें लेते और देते हैं। जरूरतों को पूरा करने के लिए किया गया भ्रष्टाचार आसानी से समाप्त किया जा सकता है, लेकिन लालच से पैदा हुआ भ्रष्टाचार सिर्फ अमीरी रेखा बनाने से ही समाप्त हो सकता है। भ्रष्टाचार का ख़ात्मा करने के लिए उसकी जड़ 'लालच' पर लगाम लगानी होगी।
यहाँ यह सवाल पैदा हो सकता है कि किसी भी व्यक्ति की आमदनी और खर्चे पर नियंत्रण कैसे रखा जा सकता है ? यह काम मुश्किल तो है परन्तु विज्ञान और तकनीकी के इस युग में असंभव नहीं है। क्या फोन के टॉक-टाइम और इंटरनेट डेटा की तरह हम धन के उपयोग पर भी नियंत्रण नहीं रख सकते हैं ?
3. मंदी का ख़ात्मा : आज हर व्यापारी की ज़बान पर बस एक ही लाइन है: धंधा बड़ा मंदा है। बाज़ार सामान से अटे पड़े हैं, पर खरीदार नहीं हैं। उदाहरण के लिए, नए बने मकान बेचना मुश्किल हो रहा है जबकि लाखों लोग खुले आसमान के नीचे जीने के लिए मजबूर हैं। अमेरिका जैसे देश में भी खाली मकानों की संख्या
(1
करोड़ 86 लाख) बेघर लोगों की संख्या
(35 लाख) से अधिक है।
अर्थव्यवस्था में मंदी की स्थिति तभी आती है जब मुट्ठीभर लोगों के हाथ में सीमित धन का ज्यादातर हिस्सा जमा हो जाता है । ऐसे में आबादी के एक बड़े हिस्से की 'खरीदने
की
क्षमता' कम हो जाती है या पूरी तरह से ख़त्म हो जाती है। ऐसी स्थिति में जब फैक्टरियों में बना माल पूरी तरह से बिकता नही है, तो पूंजीपति उत्पादन कम कर देते हैं और कर्मचारियों की छंटनी कर देते हैं। इससे बेरोजगारी बढ़ती है और जनता की क्रयशक्ति और कम हो जाती है। ऐसी ही स्थिति को कहा जाता है 'आर्थिक मंदी' ।
इसका समाधान है कि पैसा कुछ लोगों की जेबों में ही बंद न रहे
। जैसे रुका हुआ जल सड़ता है और बिमारियों
को जन्म देता है, वैसे ही रुका हुआ पैसा मंदी, बेरोजगारी और अपराध को जन्म देता है । जरूरी है कि पैसा जन-जन तक जाए ; उनकी खरीदने की क्षमता बढे ; उत्पादित सामान बिके; लोगों का जीवन स्तर सुधरे और अर्थव्यवस्था आगे बढे
।
और ऐसा संभव है सिर्फ अमीरी रेखा खींचने से।
4. बेरोजगारी का ख़ात्मा : लगभग 10 लाख भारतीय युवा
हर महीने बेरोज़गारों की कतार में लग जाते हैं, यानी हर साल देश को लगभग 1 करोड़ 20
लाख नए रोज़गार पैदा करने की आवश्यकता है। लेकिन लेबर ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि
वर्ष 2015 में 1 लाख 55 हज़ार और 2016 में
2 लाख 31 हज़ार रोज़गार पैदा हुए। इनसे पिछले वर्षों के आंकड़े भी कोई खास
उत्साहवर्धक नहीं हैं।
क्या हमारे पास इतने रोज़गार हैं ?
जी नहीं ! क्या इतने रोज़गार पैदा किये जा सकते हैं ? जी हाँ, ये
रोज़गार पैदा किये जा सकते हैं । आज आप जहाँ भी नज़र डालें, तो देखेंगे कि कितनी ही सड़कें, रेल की पटरियाँ, स्कूल-कॉलेज, अस्पताल, उद्योग आदि बनने बाकी हैं
।
इन्हें बनाने और इनमे काम करने के लिए बेरोजगारों की एक बड़ी संख्या भी है, परन्तु इन कामों को करवाने के लिए पर्याप्त धन सरकार के पास नहीं है । सरकारी खज़ाना काफी नहीं है । इसलिए सरकार मुँह देखती है बड़े-बड़े देशी और विदेशी पूंजीपतियों का। सरकार एफ.डी.आई. या पी.पी.पी के नाम पर इन धन्ना सेठों से मदद लेती है। इन्हे बैंकों से कम से कम ब्याज दर पर कर्ज दिलवाती है और ज़रूरत पड़ने पर टैक्स और कर्ज माफ़ कर देती है। बदले में ये धन कुबेर रोजगार पैदा करने के नाम पर कम से कम लगा कर अधिक से अधिक बटोर लेना चाहते हैं। और अगर ऐसा नही हो पाता है, तो जनता का रोजगार जाए भाड़ में, ये तुरन्त ऐसे काम से निकल जाते हैं। इसके अलावा विभिन्न उद्योग-धंधों और व्यापार में पैसा लगाकर मुनाफा कमाने में लम्बा समय लगता है, इसलिए ये धनपति शेयर बाज़ार के सट्टे में पैसा लगाकर थोड़े समय में ही मुनाफा कमा लेना ज्यादा बेहतर समझते हैं।
कैंब्रिज
यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जॉन ईटवैल के अनुसार 1970 में विश्व का 90 % धन व्यापार
और अन्य उत्पादक गतिविधियों में लगा हुआ था और 10% सट्टे में, परन्तु 1990 तक
स्थिति बिलकुल उलट हो गई यानी 90% धन सट्टे में लग गया और उत्पादक गतिविधियों के
लिए मात्र 10% बचा।
अमीरी रेखा बना देने से धन कुछ मुट्ठीभर लोगों के हाथ में जमा नहीं हो पायेगा और सरकार के पास विकाश
कार्य करने के लिए पर्याप्त पैसा होगा। अधिक से अधिक रोजगार के अवसर पैदा होंगे। धन एक हाथ से दूसरे हाथ तक पहुँच कर पूरी अर्थव्यवस्था में प्रवाहित रहेगा। उसका अधिक से अधिक विकेन्द्रीकरण और समाजीकरण होगा तथा बेरोजगारी का खात्मा हो जाएगा।
5.
अपराध में भारी कमी : अपराध का एक बहुत बड़ा कारण है व्यक्ति के पास धन का जरूरत से कम या ज़रूरत से ज्यादा होना। जहाँ एक ओर पैसा कम होने से लोग अपराध करने के लिए मजबूर होते हैं और पूरे समाज के लिए खतरा बनते हैं, वंही दूसरी ओर पैसे की अधिकता से भी लोग विलासी बनते हैं और उनका दिमाग बुराइयों में लग जाता है।
आज अगर आप पढ़ाई में बहुत अच्छे हैं और आपकी किस्मत अच्छी है, तो आप कठिन परीक्षाओं को पास कर मुट्ठीभर नौकरियों में से एक अपने लिए झपट पाएंगे। या फिर कोई बिजनेस शुरू करने के लिए आपके पास खूब पैसा है और बिज़नेस की बड़ी मछलियों के मुँह से कुछ अपने लिए छीन लेने की क्षमता
है, तब तो आप अपने लिए रोटी, कपड़ा, मकान, चिकित्सा और अपने बच्चों के लिए शिक्षा का इंतज़ाम कर पाएंगे वरना नहीं।
सवाल है कि जो ऐसा नहीं कर पाते उनके लिए क्या व्यवस्था है; क्या उन्हें रोटी, कपड़ा, मकान नहीं चाहिए। और इन्हे पाने के लिए अगर वे अपराध का रास्ता अपना लें तो क्या यह स्वाभविक नहीं है ? इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि न्यूनतम की गारण्टी और अधिकतम संपत्ति की सीमा निर्धारित कर देने से यानि अमीरी रेखा बनाने से अपराधों में भारी कमी आएगी।
इसमें कोई शक नहीं कि ऊपर बताई समस्याओं को हल करने के लिए हमें अर्थव्यवस्था में कई और बड़े परिवर्तन करने होंगें
। कृषि,
उद्योग, वाणिज्य, व्यापार, बैंकिंग, कर व्यवस्था आदि को विकेन्द्रित ढंग से
पुनर्नियोजित एवं पुनर्गठित करना होगा, परन्तु इसका आधार होगा सीमित भौतिक संसाधनों पर सामाजिक नियंत्रण की नीति यानि -- अमीरी रेखा।
प्राउटिष्ट ब्लॉक, इंडिया (पी.बी.आई.)
स्त्रोत:
2.
https://www.oxfam.org/en/pressroom/pressreleases/2017-01-16/just-8-men-own-same-wealth-half-world
4.
https://scroll.in/article/826484/embargoed-jan-16-00-01gmt-57-billionaires-possess-70-of-indias-wealth-oxfam-inequality-report
0 Comments