एक तन पे सोने के तार खिंचे,
एक तन पे सूत का तार नहीं।
इसलिए बगावत करता हूँ
यह अन्याय मुझे स्वीकार नहीं।।
हल की सूरत देखी नहीं,
हकदार, हजारों बीघे का।
हल के संग हस्ती मिटा रहा,
वह बीघे का हकदार नहीं।।
रहने वाले दो प्राणी।
दस हाथ का घर, दस रहते है,
सो सकते पैर पसार नहीं।।
माखन मुस्टण्डे खाते है।
द्वार पर कंगाल खड़ा, पर
सुनते श्याम पुकार नहीं।।
एक चर्बी का मारा परेशान,
एक कोरे हाड़ लिए बैठा
एक दिलदारों से परेशान
एक ओर कोई दिलदार नहीं।।
0 Comments