
प्रउत प्रवर्तक और प्राउटिष्ट ब्लाक, इंडिया (पीबीआई ) के संस्थापक श्री प्रभात रंजन सरकार ने इस संदर्भ में जो मार्ग दर्शन दिया है, उसके आलोक में निम्न तीन बिंदुओं पर उनका मुख्य जोर रहा है। वैसे उन्होंने यह सुस्पष्ट घोषणा की है कि “ इफ सिनसियर,
सक्सेस इज सरटेन्टी”
(अगर निष्ठा है, तो सफलता सुनिश्चित है)। निश्चय ही निष्ठा शब्द अपने में जबरदस्त व्यापकता को समेटे हुए है। जिन तीन विंदुओं का मैं नीचे उल्लेख कर रहा हूं, वे उन्हीं के द्वारा बताए गए विंदु हैं - तथा मैं समझता हूं कि इन तीन विंदुओं को व्यवहार में उतारने से निष्ठातत्त्व की पूरी-पूरी उपलब्धि हो सकती है।
प्रथम बिंदु है -वर्तमान में रहना (वर्तमानेषु वर्तेते )। हम जिन परिस्थितियों में रह रहे हैं, जिनसे गुजर रहे हैं-उन्हीं को सामने रखते हुए कार्यारंभ करना चाहिए। हम अतीत से प्रेरणा लें, तथा भविष्य के सुनहले आगमन के प्रति पूर्ण आस्थावान रहें, परंतु कार्य का आरंभ वर्तमान की दशा-दिशा की पृष्ठभूमि
में ही होना संगत और सुरूचिपूर्ण है। वर्तमान जैसा भी हो किंतु हम वहीं और उन स्थितियों
परिस्थितियों की वास्तविकता को ध्यान में रख कर (अर्थात उनकी अवहेलना न कर) आगे बढ़ें। वास्तविक अर्थ में व्यावहारिक बनें।
द्वितीय बिंदु है: साधनों-संसाधनों के अभाव को लेकर अनावश्यक दुश्चिंताग्रस्त न हों। यह सोचना कि हमारे पास धन की कमी है, सक्रिय समर्थकों की कमी है-अतः काम कैसे पूरा होगा, उद्यम कैसे सफल होगा। इस प्रकार की धारणा-मानसिकता को तरजीह नहीं देना है। जितना है, उसका सर्वोत्तम और अधिकतम उपयोग करना है और आगे बढ़ते रहना है योजनाबद्ध तरीके से। बाधाओं-असुविधाओं के मन पर हावी होने देने का अर्थ है कि मन दुर्बल है। वह समस्याओं के सामने घुटने टेक देता है। अतः दृढ़ मनोबल, अदम्य आत्मबल का धनी होना है। किसी भी परिस्थिति
में मन ठिठक नहीं जाय, व्यक्ति माथा पकड़ कर विलाप न करने लगे तथा चारों ओर केवल घनघोर अंधेरा ही नहीं दिखाई देने लगे। अर्थात “प्रगति का गीत ही हमारी एकमात्र भाषा हो।” अग्रगति के द्वारा ही हम अपनी निष्ठा और प्रतिबद्धता का असली परिचय देंगे।
अंत में तीसरा बिंदु है: विजय की उत्कट लालसा। जीतने का जुनून होना चाहिए। मैं जीतूंगा ही, जीतकर ही रहूंगा - यही तरंग मन-प्राण को सदैव उद्वेलित हिंदोलित करती रहे तब लक्ष्य प्राप्ति सुगम से सुगमतर हो जाएगी।
हमें आत्मविश्वास तथा ईश्वरनिष्ठा से भरपूर होना है।
यह किसी भी लक्ष्य को पहुंच के भीतर ला देगा।
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लेखक: आचार्य संतोषानंद अवधूत |
1 Comments
I am Very hppy to see this 🙏🤗
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