एक नया सपना सजाने के लिए,
एक नयी दुनिया बसाने के लिये।
नौजवानों आज नवयुग ने पुकारा है तुम्हें,
इन्कलाबी दौर लाने के लिए।
हर नगर, हर गांव के,
हर गली कूचे हर डगर।
भर उठेंगे, फिर नये आलोक से,
एक दीपक से हज़ारों दीप जल जाएँगे अगर।
नींद से सबको जगाने के लिए,
इस अंधेरे को भगाने के लिए।
नवजवानों आज नवयुग ने पुकारा है तुम्हें,
अब नया दीपक जलाने के लिये।
रूढ़ियाँ बाधाएँ बन कर हो खड़ी,
स्वार्थ के भी नाग फुफकारें अगर।
मीत चंदन विपट बन जाना वहां तुम,
क्या बिगाड़ेंगे उगल कर वे जहर।
भाईचारा एकता के स्वर सजा कर,
मनुजता की बीन में सुर प्यार के भर।
नौजवानों आज नव युग ने पुकारा है तुम्हें,
नये युग के गीत गाने के लिए।
स्वार्थ का साधन न बन कर,
स्वर बनो तुम साधना के।
उठो साथी आज बढ़ कर द्वार खोलो,
नित नवेली मांगलिक संभावना के।
फिर जगाने मानवी संवेदना को,
एक नूतन विद्या देने चेतना को।
नौजवानों आज नवयुग ने पुकारा है तुम्हें,
जागरण के स्वर गुँजाने के लिए।
घृणा, हिंसा, स्वार्थ के सब जहर पीकर,
इस धरा को है तुम्हें विष मुक्त करना।
बन के मृत्युंजय समय की इस शिला पर,
आज तुमको है नया इतिहास गढ़ना।
बेगुनाहों का लहू बहने न पाए,
फिर पिपासा रक्त की जगने न पाये।
नव जवानों आज नवयगु ने पुकारा है तुम्हें
प्यार की मुरली बजाने के लिए।
आज गंगाधर बनो तुम,
प्यार की गंगा बहाकर।
हो मनुज विषमुक्त जिसकी,
विमल धारा में नहा कर।
साधना जिसकी हरे सारी तपन,
भूल जायेंगे आज विषधर विष व मन।
नौजवानों आज नवयुग ने पुकारा है तुम्हें,
बन सदाशिव विष पचाने के लिए।
-- जगन्नाथ मेहता
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